Chamcha Yug Hindi Book Summary                  

 

Chamcha Yug बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के बाद  बहुजनों के सबसे बड़े मसीहा अगर मान्यवर कांशीराम kanshiram को कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, उन्होंने हाशिये पर पड़े वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिए अपनी पूरी ज़िंदगी लगा दी।

बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के बाद  बहुजनों के सबसे बड़े मसीहा अगर मान्यवर कांशीराम को कहा जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं होगा | उन्होंने हाशिये पर पड़े वंचित वर्गों को सही दिशा में लाने के लिए अपनी पूरी जिंदगी संघर्ष करते  रहे |

उन्होंने बहुजन वर्ग के राजनितिक एकीकरण और उत्थान के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया, मान्यवर कांशीराम साहब ने 1982 में चमचा युग नामक बुक लिखी।

उन्होंने शोषित पिछड़े और वंचित समाज को राजनितिक एकीकरण  और उनके उत्थान के लिए अपना सब कुछ त्याग कर दिया और 1982 में चमचा युग नामक पुस्तक लिखी |

 

Manyavar Kanshiram sahab Chamcha Yug

 

Chamcha Yug को लिखने का उनका उद्देश्य यह था की दलित-शोषित समाज और इसके कार्यकर्ताओं और नेताओं को हमारे दलित और शोषित समाज में चमचों के इस तत्व की बड़े पैमाने पर मौजूदगी के बारे में अवगत , जागरूक , और सावधान किया जाए,

Chamcha Yug को तैयार करने का एक उद्देश्य यह भी था की जन साधारण, विशेषकर कार्यकर्ताओं को इस योग्य बनाया जाए की वे असली और नकली नेतृत्त्व में भेद कर सकें।

Chamcha Yug में चमचों के मुख्य किस्में इस प्रकार हैं :-

चमचों की विभिन्न किस्में

बाबासाहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के जीवनकाल में उनको केवल कांग्रेस और अनुसूचित जातियों के चमचों से ही निपटना पड़ा था। बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद अनेक नई-नई किस्मों के चमचों के उभर आने से स्थिति और खराब हो गई।

उनके जाने के बाद, कांग्रेस के अलावा अन्य दलों को भी, केवल अनुसूचित जातियों से नहीं बल्कि अन्य समुदायों के बीच से भी, अपने चमचे बनाने की जरूरत महसूस हुई। इस तरह, भारी पैमाने पर चमचों की विभिन्न किस्में उभर कर सामने आईं।

(क) विभिन्न जातियों और समुदायों के चमचे

भारत की कुल जनसंख्या में लगभग 85% पीड़ित और शोषितलोग हैं, और उनका कोई नेता नहीं है। वास्तव में ऊंची जातियों के हिंदू उनमें नेतृत्वहीनता  की स्थिति पैदा करने में सफल हुए हैं।

यह स्थिति इन जातियों और समुदायों में चमचे बनाने की दृष्टि से अत्यंत सहायक है। विभिन्न जातियों और समुदायों के अनुसार चमचों की निम्नलिखित श्रेणियाँ गिनाई जा सकती हैं।

1.अनुसूचित जातियां-अनिच्छुक चमचे

बीसवीं शताब्दी के दौरान अनुसूचित जातियों का समूचा संघर्ष यह इंगित करता है कि वे उज्जवल युग में प्रवेश का प्रयास कर रहे थे किंतु गांधी जी और कांग्रेस ने उन्हें Chamcha Yug  में धकेल दिया ।

वे उस दबाव में अभी भी कराह  रहे हैं, वे वर्तमान स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाए हैं और उस से निकल ही नहीं पा रहे हैं इसलिए उन्हें अनिच्छुक चमचे कहा जा सकता है। 

2.अनुसूचित जनजातियां – नव दीक्षित चमचे

Chamcha Yug में मान्यवर साहब कहते हैं की अनुसूचित जनजातियां भारत के संवैधानिक और आधुनिक विकास के दौरान संघर्ष के लिए नहीं जानी जातीं। 

1940 के दशक में उन्हे भी अनुसूचित जातियों के साथ मान्यता और अधिकार मिलने लगे। 

भारत के संविधान के अनुसार 26 जनवरी 1950 के बाद उन्हें अनुसूचित जातियों के समान ही मान्यता और अधिकार मिले। 

यह सब उन्हें अनुसूचित जातियों के संघर्ष के परिणाम स्वरूप मिला, जिसके चलते राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मत  उत्पीड़ित और शोषित भारतीयों के पक्ष में हो गया था। 

आज तक उन्हें  भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल में कभी प्रतिनिधित्व  नहीं मिलता।  फिर भी उन्हें जो कुछ मिल पाता है, वे उसी से  संतुष्ट दिखाई पड़ते हैं, इससे भी खराब बात यह है कि वह अभी भी किसी मुगालते में हैं कि उनका उत्पीड़क और शोषक ही उनका हितैषी है।  

इस तरह उन्हें नवदीक्षित चमचे  कहा जा सकता है क्योंकि उन्हें सीधे – सीधे चमचा युग में दीक्षित किया गया है। 

3.अन्य पिछड़ी जातियां – महत्वाकांक्षी चमचे

लंबे समय तक चले संघर्ष के बाद अनुसूचित जातियों के साथ अनुसूचित जनजातियों को मान्यता और अधिकार मिले। 

इसके परिणाम स्वरूप उन लोगों ने अपनी सामर्थ्य और क्षमताओं से भी बहुत आगे निकल कर अपनी संभावनाओं को बेहतर कर लिया है। 

यह बेहतरी शिक्षा, सरकारी नौकरियों और राजनीति के क्षेत्रों में सबसे अधिक दिखाई देती है। 

अनुसूचित जातियों और जनजातियों में इस तरह की बेहतरी ने अन्य पिछड़ी जातियों की महत्वाकांक्षाओं को जगा दिया है।  अभी तक तो वे इस महत्वाकांक्षा को पूरा करने में सफल नहीं हुए हैं। 

पिछले कुछ वर्षों में उन्होंने हर दरवाजे पर दस्तक दी उनके लिए कोई दरवाजा नहीं खुला।  अभी जून 1982 में हरियाणा में हुए चुनाव में हमें उन्हें निकट से देखने का मौका मिला। 

अन्य पिछड़ी जातियों के तथाकथित छोटे नेता टिकट के लिए हर एक दरवाजा रहे थे अंत में हमने देखा कि वे  हरियाणा की 90 सीटों में से एक टिकट कांग्रेस(आई) से और एक टिकट लोक दल से ले पाये।

 आज हरियाणा विधानसभा में अन्य पिछड़ी जाति का केवल एक विधायक है।  कुछ स्थानों विशेषकर दक्षिण के कुछ स्थानों को छोड़ कर हम उन्हें अनेक स्थानों और अनेक स्तरों पर संघर्ष करने के बावजूद अपने अधिकार पाने से वंचित देखते हैं। 

जैसा कि हरियाणा में है वास्तव में उनकी एक बड़ी संख्या में सब पाना चाहती है जो अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को पहले ही मिला हुआ है। 

3700 से अधिक अन्य पिछड़ी जातियों में से लगभग 1000 जातियां ना केवल अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति की सूची में सम्मिलित किए जाने की महत्वाकांक्षा कर रही हैं।

बल्कि  उसके लिए संघर्ष कर रही हैं।  इस प्रकार अन्य पिछड़ी जातियों का कुल व्यवहार हमें इस ओर ले जाता है कि वह Chamcha Yug में महत्वाकांक्षी  चमचे हैं। 

4.अल्पसंख्यक – असहाय चमचे

सन 1971 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या में धार्मिक अल्पसंख्यकों का प्रतिशत 17.28 है। 15 अगस्त 1947 को भारत के अंग्रेजों के भारत छोड़ने से पहले उन्हें उनकी आबादी के अनुसार उनका अधिकार मिल रहा था। 

उसके बाद तो वह पूरे तौर पर भारत की शासक जातियों की दया पर निर्भर हो गए।  सांप्रदायिक दंगों की बहुतायत होने के कारण मुसलमान चौकन्ने  रहते हैं। 

ईसाई बेबस घिसट रहे हैं। सिख सम्मानजनक जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बौद्ध तो संभाल भी नहीं पाये हैं।  इस सबसे यही प्रमाणित होता है कि भारत के अल्पसंख्यक असहाय चमचे हैं। 

 

babasaheb ambedkar

(ख) विभिन्न दलों के चमचे

कांग्रेस का दूसरा दुष्कृत्य था अछूत काँग्रेसियों से कठोर पार्टी अनुशासन का पालन करवाना। वे पूरे तौर पर कांग्रेस कार्यकारिणी के नियंत्रण में थे । वे ऐसा कोई सवाल नहीं पुछ सकते थे जो कार्यकारिणी को पसंद न हो।

वे ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं रख सकते थे जिसमें उसकी अनुमति न हो। वे ऐसा विधान नहीं ला सकते थे जिस पर उसे आपत्ति हो।

वे अपनी इच्छानुसार मतदान नहीं कर सकते थे और जो सोचते थे वह बोल भी नहीं सकते थे। वे वहाँ हाँके हुए मविशियों की तरह थे।

  अछूतों के लिए विधायिका में प्रतिनिधित्व प्राप्त करने का एक उद्देश्य उन्हें इस योग्य बनाना है की वे  अपनी शिकायतों को व्यक्त कर सकें और अपनी गलतियों को सुधार सकें। 

कांग्रेस ऐसा न होने देने के अपने प्रयासों में सफल और कारगर रही।”

इस लंबी और दुखद कहानी का अंत करने के लिए कांग्रेस ने पूना  समझौते का रस चूस लिया और छिलका अछूतों  के मुह पर फेंक दिया।” – डॉ. भीमराव आंबेडकर

अनुसूचित जातियों के विधायकों की असहायता का वर्णन डॉ. आंबेडकर ने अपनी पुस्तक काँग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिए क्या कियामें किया है। यह स्थिति 1945 में थी। आने वाले वर्षों में, हमें और भी खराब हालत और भी बड़े पैमाने पर देखने को मिले।

उस समय इस तरह का व्यवहार करने और अनुसूचित जातियों में से चमचे बनाने वाली ऊंची जातियों के हिंदुओं  की राष्ट्रीय स्तर पर 7 पार्टियां और राज्य तथा क्षेत्रीय स्तर की अनेक पार्टियां हैं,

जो केवल अनुसूचित जातियों से ही नहीं बल्कि भारत के सभी उत्पीड़ित और शोषित समुदायों से चमचे पैदा कर रहीं हैं।

आज ऊंची जातियों के हिंदुओं की ये सभी पार्टियां रस चूस रही हैं और छिलका उन 85% उत्पीड़ित और शोषित भारतीयों के मुंह पर फेंक रही हैं।

इस प्रकार , विभिन्न दलों में चमचों के इस निर्माण ने हमारे लिए हालत और भी बदतर कर दिए हैं। जो लोग समस्या से निपटना चाहते हैं वे अपने सामने खड़ी और भी बड़ी समस्या के इस पहलू को अनदेखा नहीं कर सकते।

(ग) अज्ञानी चमचे

Chamcha Yug में मान्यवर साहब बताते हैं कि भारत के उत्पीड़ित लोग, विशेषकर दलित वर्ग, लगभग पूरे भारत में अन्याय के खिलाफ जूझ रहे थे।  उनके अधिकांश संघर्ष स्थानीय और क्षेत्रीय रहे। 

देश की जनसंख्या और आकार को ध्यान में रखते हुए, हम कह सकते हैं कि वे संघर्ष लगभग  अलग थलग रहकर किए गए कि वे समूह का संघर्ष प्रतीत  होते हैं। 

उन समूहगत संघर्षों  मेंलोग केवल अपने ही संघर्ष के बारे में जानते थे और अन्यत्र चल रहे अपने बंधुओं के अन्य संघर्षों के बारे में अनजान रहते थे। 

दलित वर्गों  की इस  अक्षमता की कल्पना  इस तथ्य से की जा सकती है कि दलित वर्गों की एक बड़ी जमात उनके ही लिए, किए गए डॉ.  आंबेडकर के आजीवन संघर्ष के बारे में बिल्कुल अनजान बनी रही। 

आज भी भारत में अनुसूचित जातियों के लगभग 50% लोग डॉ. आंबेडकर  के जीवन और मकसद के बारे में अनजान हैं। 

अनुसूचित जातियों , अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ी जातियों की इस व्यापक स्तर की अज्ञानता का ऊंची  जातियों के हिंदुओं ने लाभ उठाया। 

उनकी अज्ञानता और अन्य कमजोरियों  का लाभ उठाते हुए ऊंची जातियों के हिंदुओं ने उनमें आसानी से चमचे बना लिये।  इस किस्म के चमचों को अज्ञानी चमचे  कहा जा सकता है। 

 

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यह अज्ञानी चमचे डॉ.  आंबेडकर के जीवन काल में उनके लिए बड़ा सरदर्द  बने रहे।  अपनी प्रसिद्ध पुस्तक काँग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिए क्या किया‘  में  उन्होंने इसके कुछ उदाहरण दिए हैं।  अज्ञानी तत्वों का एक  ऐसा उदाहरण इस प्रकार  है :-

फ्री प्रेस जर्नलदिनांक 14 . 4. 45 के अनुसार रायबहादुर मेहरचंद खन्ना नाम के एक सज्जन ने डिप्रेस्ड क्लासेस  लीग के तत्वाधान में 12 अप्रैल 1945 को पेशावर में आयोजित अछूतों की सभा में कथित तौर पर कहा था —

आप के सबसे अच्छे मित्र महात्मा गांधी हैंउन्होंने आप की खातिर अनशन तक  किया और पूना समझौता किया जिसके तहत आप को वोट डालने का हक मिला और स्थानीय निकायों और विधायिका में नुमाइंदगी दी गई। 

मुझे पता है कि आप में से कुछ लोग डॉ.  आंबेडकर के पीछे भाग रहे हैं, जो महज अंग्रेज साम्राज्य वादियों की देन है और जो अंग्रेजी हुकूमत के हाथ मजबूत करने के लिए आप का इस्तेमाल करते हैं। 

ताकि भारत का विभाजन हो जाए और सत्ता उनके  हाथ में बनी रहे।  मैं आपके हित में आप से अपील करता हूं कि आप स्वयंभू नेताओं और अपने सच्चे दोस्तों में फर्क करें। 

दलित वर्गों की इसी अज्ञान  के चलते ऊंची जातियों  के हिन्दू  उन्हें आसानी से गुमराह कर लेते थे। 

वे उन्हें विश्वास दिला देते थे कि उनके अधिकारों को हड़पने वाला ही उनका  उद्धारक है। 

 इस तरह बड़ी संख्या में दलितों को गुमराह किया गया और उन्हें  आसानी से अज्ञानी चमचे बना लिया गया। 

(घ) प्रबुद्ध चमचे अथवा अंबेडकरवादी चमचे

हमने अज्ञानी लोगों पर गौर किया और इस बात पर भी कि उनमें से चमचे कैसे बनाए गए।  किंतु चमचा युग में सबसे दुखद हिस्सा है प्रबुद्ध चमचे अथवा अंबेडकरवादी चमचे ।

डॉ. आंबेडकर ने स्वयं यह बताया था कि अज्ञानी जनसमूह को अछूतों के संघर्षों में गांधी जी और डॉ.  आंबेडकर की भूमिका के बारे में कैसे गुमराह किया गया। 

हम अज्ञानी जनसमूह के आचरण को समझ सकते हैं। किंतु प्रबुद्ध लोगोंविशेषकर स्वयं डॉ आंबेडकर द्वारा प्रबुद्ध किए गए लोगों  के आचरण का क्या करें। 

इन प्रबुद्ध लोगों को गांधी जी और डॉ.  आंबेडकर की भूमिका के बारे में पता होना ही चाहिए। 

हम यह जानकर स्तब्ध रह गए कि इन प्रबुद्ध चमचों ने लगभग 1 वर्ष पहले 24 सितंबर 1982 को पूना समझौते की स्वर्ण जयंती मनाने के लिए पुणे में एक समिति बनाई। 

1 वर्ष पहले ही बना ली गई इस समिति में आर. पी . आई के महासचिवदलित पैंथर्स के पदाधिकारी और डॉ.  अंबेडकर के ही प्रबुद्ध समुदाय के कुछ वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे।

अब  पूना समझौते को परिणति  तक पहुंचाने में गांधी जी और डॉ.  आंबेडकर की भूमिका को  अच्छे से जानते हुएपेशावर के अपने अज्ञानी बंधुओं के विपरीत पूना के प्रबुद्ध लोग पूना समझौते की स्वर्ण जयंती मनाने के बारे में सोच भी नहीं  सकते  थे। 

किंतु ये  आंबेडकरवादी चमचे  स्वर्ण जयंती के बारे में केवल सोच ही नहीं रहे थे , बल्कि 1 साल पहले से ही उसकी जोर शोर से तैयारी भी कर रहे थे ।

इससे भी अधिक बुरी बात यह है कि इन लोगों ने डॉ. आंबेडकर की सलाह पर और मिस्टर आर आर भोले के नेतृत्व में 1946 में पुणे समझौते की निंदा की थीवे  भी स्वर्ण  जयंती मनाने के लिए स्वयं को तैयार कर रहे थे। 

केवल इसी को नहीं बल्कि उनके  सर्वांगीण आचरण को भी और पिछले कई सालों से टुकड़खोरी पर उनकी तत्परता को ध्यान में रखते हुए , हमने इस किस्म के प्रबुद्ध चमचों  अथवा अंबेडकरवादी चमचों का नाम देने का फैसला किया है।  

(च) चमचों के चमचे

वयस्क मताधिकार पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था की राजनीतिक अनिवार्यताओं ने  उन्हें भारत की शासक जातियों को बाध्य कर दिया कि वे भारत की उत्पीड़ित और शोषित जातियों और समुदायों में से चमचे बनाएं। 

इस प्रकार हमें राजनीतिक गतिविधियों के विभिन्न स्तरों पर चमचों की बहुतायत दिखाई देती है। 

इन राजनीतिक चमचों की योग्यता की परख  उनकी अपनी अपनी जातियों में उनके अनुयायियों की संख्या से होती है । ऊंचे और बड़े स्तर पर सक्रिय चमचे अपने बूते पर बड़े काम नहीं संभाल सकते। 

इस तरहशासक जातियों की पूरी तौर पर  और निष्ठा से सेवा करने के लिए उन्हें चमचे बनाने की जरूरत होती है

इसके अतिरिक्त अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षित कर्मचारियों की बढ़ती ही जा रही  संख्या से  ऐसे चमचे बनाने के लिए एक उपजाऊ भूमि तैयार होती है। 

शिक्षित कर्मचारियों के इस वर्ग में मौजूद चालाक लोग राजनीतिक चमचों से अनुचित अनुग्रह और लाभ प्राप्त करने के लिए उनकी चमचागिरी करते हैं । समय के साथ ऐसे व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है।  इस वर्ग के पिट्ठूओं को चमचों के चमचे कहा जा सकता है।

(छ) विदेश स्थित चमचे

भारत में क्योंकि उत्पीड़ितों का कोई  स्वतंत्र आंदोलन नहीं हैइसलिए विगत वर्षों के पसंदीदा और अघाए  चमचे शांत है । भारत में चमचों का यह निम्न स्तर 1980 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बाद बिल्कुल निम्नतम स्तर पर पहुंच गया।

Chamcha Yug में  भारत में अघाए चमचों के इस निम्न स्तर के चलते विदेशों में रह रहे अनेक अछूत अवसर वादियों  ने गलती से यह समझ लिया कि भारत में चमचों का अभाव है। 

मानो इस रिक्त स्थान को भरने के लिए अनेक स्वार्थी और अवसरवादी चमचे भारत की ओर दौड़ पड़े।  अमेरिका से आए ऐसे ही एक योग्य व्यक्ति को दिल्ली में और उसके आसपास अपने  आपको शासक दल के चमचे के तौर पर जमा लेने की फूहड़ कोशिश करते हुए देखा गया ।

भारत में लंबे समय तक ठहरने के दौरान उसका मोहभंग हो गया और वह वापस अमेरिका जाकर वहां न्यूयॉर्क सिटी की कांग्रेस (आई) में शामिल हो गया। 

ऐसे तमाम स्वार्थी अछूतों को लगभग मोहभंग की स्थिति में अपने-अपने विदेशों में लौटना पड़ा।  मैंने इन अधपकी  कोशिशों की ओर गौर करने का फैसला इसलिए किया है क्योंकि विदेशों में चमचे हैं जो पास में छिप रहे हैं।  जब भारत में उत्पीड़ित भारतीयों का आंदोलन मजबूत हो जाएगा तो वह फिर से खुले में आ जाएंगे।

 

चमचा युग.pdf from DeepGyan2

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QnA

 

चमचा युग किताब किसने लिखी?

मान्यवर कांशीराम साहब ने 1982 में चमचा युग नामक बुक लिखी।

मान्यवर कांशीराम साहब का चमचा युग लिखने का क्या उद्देश्य था?

चमचा युग / Chamcha Yug को लिखने का उनका उद्देश्य यह था

कि दलित-शोषित समाज और इसके कार्यकर्ताओं और नेताओं को हमारे दलित और शोषित समाज में चमचों के इस तत्व की बड़े पैमाने पर मौजूदगी के बारे में अवगत , जागरूक , और सावधान किया जाए।

इस पुस्तक को तैयार करने का एक उद्देश्य यह भी था की जन साधारण, विशेषकर कार्यकर्ताओं को इस योग्य बनाया जाए की वे असली और नकली नेतृत्त्व में भेद कर सकें।

चमचा युग / Chamcha Yug में चमचों के कौन कौन से प्रकार बताए गए हैं?

चमचा युग में चमचों के मुख्य किस्में इस प्रकार हैं :-

(क ) विभिन्न जातियों और समुदायों के चमचे

1.अनुसूचित जातियां -अनिच्छुक चमचे

2.अनुसूचित जनजातियां – नव दीक्षित चमचे

3.अन्य पिछड़ी जातियां – महत्वाकांक्षी चमचे

4.अल्पसंख्यक – असहाय चमचे

(ख) विभिन्न दलों के चमचे

(ग) अज्ञानी चमचे

(घ) प्रबुद्ध चमचे अथवा अंबेडकरवादी चमचे

(च) चमचों के चमचे

(छ) विदेश स्थित चमचे

 

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